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________________ २८२ इसी प्रकार कर्म भी पुद्गलो का समूह है substance है। आज भले ही वैज्ञानिक वर्ग इस बात को स्वीकार न करे, पर यह एक प्रमाणित तथ्य है और विचारको के द्वारा इसका स्वीकार हुए विना नही रहेगा, चाहे जत्दी हो चाहे देर मे । जैन तत्त्वज्ञान मे विचार को भी पुद्गल Substance माना जाता है । शुद्ध तात्त्विक दृष्टि से 'विचार' मन के सूक्ष्म पुद्गलो की क्रिया है । जैसे भापण-शब्द पुद्गल की क्रिया है वैसे ही विचारो द्वारा मन मे होने वाली क्रिया भी मनोवर्गणा के नाम से अभिहित पुद्गलो की क्रिया है। भाव-क्रिया मन से होती है। उसमे विचारो की प्रधानता है। (जैन दर्शन मन की क्रिया प्रात्मा के अन्दर ही मानता है, इसलिए बाहर से तो उसका केवल अनुमान होता है।) मन के भी दो विभाग है- 'भाव-मन' और 'द्रव्य-मन' । यहाँ विचार 'द्रव्य-मन' से सम्बन्ध रखते है, भाव-मन से नही । द्रव्य-मन पुद्गल-स्वरूप है, भाव-मन जीव का अध्यवसाय है, भावना है। __ 'पुद्गल' शब्द का सीधा-सादा अर्थ करना हो तो कह सकते है कि जो 'पूरण और गलन' अर्थात् इकट्ठे हो सकते है और अलग हो सकते है, और जिनके रूप, रस, गध, स्पर्ग आदि गुण होते है वे 'पुद्गल' है । यदि हम ऐसा मान ले कि जो केवल ऑखो से दीख सके या प्रयोगशाला मे मानव कृत साधनो से जिसका निरीक्षण हो सके वही पुद्गल है, तो मानव की सशोधन वृत्ति ही समाप्त हो जाय; यह मानना पडे कि मनुष्य ने जो कुछ देखा है उसके सिवाय और कुछ भी नहीं है । हम ऐसा मानने को
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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