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________________ २८१ Substance) है, ऐसा कहा है । प्रत्यन्त सूक्ष्म प्रणु-परमाणुत्रो का समूह पुद्गल द्रव्य के अन्तर्गत प्रा जाता है । यह द्रव्य भी अनेक परस्पर विरोधी गुण धर्म रखता है । आधुनिक विज्ञान ने वारीक से वारीक परमाणु को देखने के लिए जो अद्यतन साधन बनाये है वे अभी तक सूक्ष्म और सूक्ष्मतम परमाणु तक नही पहुँचे है। कर्म भी अतिसूक्ष्मसूक्ष्मातिसूक्ष्म परमाणुओं का एक समूह है । अन्य गु परमाणुओं की तरह यह भी अलग होने और जुडने के स्वभाव वाला है । भौतिक विज्ञान के पास इसे जानने और देखने के लिए कोई साधन नही हैं । एक समय था जब विज्ञानप्रेमी ऐसा सब मानने से इनकार करते थे, परन्तु ग्रव वे इनकार नही करते । जैन तत्त्ववेत्ताओ ने हजारो लाखो वर्षो पहले से कहा है कि 'शब्द' भी पुद्गलो का एक समूह है । एक समय था जब इस बात को विज्ञानवादी स्वीकार नही करते थे । जव गव्द को ग्रामोफोन के रिकार्ड में बाँधने का श्राविष्कार हुआ तब सारे ससार ने यह बात मजूर की । तार- रस्सो की मदद के बिना, वायरलेस से वेतार के सदेशो का लेन देन जब से शुरु हुआ तब से विज्ञान के क्षेत्र मे एक क्रान्तिकारी सशोधन युग प्रारम्भ हुआ । बम्बई मे हम जो गब्द बोले वे वायु की तरगो पर सवार होकर क्षण भर मे सारे मसार मे घूम जाते है, और वैज्ञानिक साधनो के द्वारा अन्य लोग उन्हे हजारो मील की दूरी पर सुन सकते है | इस वात के अनुभव के बाद सबने जैन दर्शन की यह बात मान्य रखी है कि शब्द मे सूक्ष्मातिसूक्ष्म परमाणु-रूप पुद्गल विद्यमान है ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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