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________________ २७३ यदि यह बात जल्दी समझ मे आ जाय तो सुदेव, सुगुरु और सुधर्म को समझने और प्राप्त करने मे बहुत सहायता मिल सकती है | यदि हम भौतिक कामनाओ तथा दुनिया की लोलुपताओ से क्षरण भर के लिए भी मुक्त न हो सकते हो, तो फिर उन मव तथाकथित महात्माग्रो मे और कोई कोई महात्मा वन वैठे हो उनमे हमे 'साक्षात् भगवान' के दर्शन हो तो चर्य हो क्या ? परन्तु मन के द्वारा प्राप्त ज्ञान आध्यात्निक दृष्टि से 'परोक्ष-ज्ञान' है, और सच्चा मार्गदर्शन वे ही दे सकते है जिन्हें प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त हुग्रा हो । यदि हम इतनी वात समझ ले तो चमत्कारी तथा चमत्कार - मार्तडो से हम चोधिया नही जाएँगे, और लुब्ध भी नही होगे । एक और बात याद रखने योग्य है । प्राध्यात्मिक क्षेत्र मे भी मति और श्रुतज्ञान मे मिथ्या अथवा विपरीत ज्ञान की संभावना है । यह वात निश्चित रूप से सभव है कि मन कितना ही शक्तिशाली वन जाने पर भी 'ज्ञानी' बना रहे । पहले जो विपरीत ज्ञान बताये गये है, उनमे 'मतिश्रज्ञान' तथा 'श्रुत- ग्रज्ञान' का उल्लेख किया ही है । यदि श्रुतज्ञान सम्यक् (सच्चा) हो तो वहाँ से ग्रात्मा के क्षेत्र मे प्रत्यक्ष ज्ञान में प्रवेश करने का मौका मिलता है । परन्तु यदि वह ज्ञान मिथ्या अथवा विपरीत हो तो वहाँ से विकास के बदले अवनति शुरु होती है, साधा हुआ विकास खो दिया जाता है, फलत जहाँ थे वही वापस गिर पडते हैं । यह बात बहुत ध्यान देने योग्य है । मानव-मन की चमत्कार कर दिखाने की शक्ति ग्रात्मविकास का साधन नही है | श्राध्यात्मिक साधना करते करते
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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