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________________ २७१ कहते हैं । केवलज्ञान को 'सकल प्रत्यक्ष' अथवा 'पूर्ण प्रत्यक्ष' कहते है । केवलज्ञान 'रूपी, अरूपी, स्थूल सूक्ष्म इत्यादि सब पदार्थो को सर्व द्रव्य को, सर्वकाल में और सर्व पर्यायो से जानता है, अत उसे 'सकल प्रत्यक्ष' कहा है । अवधिज्ञान और मन पर्यवज्ञान सर्व पदार्थो को और सर्व पर्यायो को नही जानते । केवलज्ञान की तुलना में ये दोनों ज्ञान अपूर्ण है । इसलिए उन्हे 'देश प्रत्यक्ष' अर्थात् 'मर्यादित प्रत्यक्ष' कहा है । परन्तु इसका यह अर्थ नही है कि ये दोनो ज्ञान कम निर्मल या कम महत्त्व के है । मति और श्रुतज्ञान की तुलना मे अवधि और मन पर्यवज्ञान, ज्ञान की बहुत ऊँची स्थिति बताते है । आजकल जिसे 'ग्रात्मसाक्षात्कार जीवन्मुक्त', आदि शब्दो से अभिहित किया जाता है, वह स्थिति तो प्राय ' मतिज्ञान की अवस्था' है । मन की शक्तियो का विकास करके अमुक निश्चित विकास सोचा जा सकता है, उससे विलक्षण परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । इस प्रकार से मानसिक शक्ति का जो विकास होता है, उससे प्राप्त किसी किसी अनुभव को कई लोग ‘आत्म-साक्षात्कार' मानते है, परन्तु वस्तुत यह मतिज्ञान की अवस्था है, अत आध्यात्मिक विकास की तो यह केवल एक प्राथमिक भूमि का ही है । इसमे मिथ्या - ज्ञान को भी अवकाश है । मनुष्य का मन एक विराट विषय है । मन की शक्ति असीम है । मन पर काबू और नियंत्रण करके बहुत बहुत जाना और समझा जा सकता है । मन के अपनी आँखें, ग्रपने
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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