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________________ वैरिस्टर चक्रवर्ती हमने पिछले प्रकरण मे देखा कि 'सप्तभगी' एक विशिष्ट प्रकार की 'कसौटीमाला' – A chain of wonderful formulas—है । यह एक सिद्ध पद्धति - proved Method ( केवल Proved ही नही, Approved भी ) है, मिद्ध के उपरान्त स्वीकृत भी है । उसमे कुछ भी सदिग्ध नही, कुछ भी अस्पष्ट नही, कुछ भी अनिश्चित नहीं है । इसका उपयोग करके एक ही वस्तु को हमने सात भिन्नभिन्न रीतियो से पिछले प्रकरण में जाँच लिया । उसमे घडा और फूलदान इन दो वस्तु को माध्यम बना कर हमने सप्तभगी का वर्णन किया था यदि हम इस तरह सात भिन्न २ रोतियो से विचार करने लगे तो यह बात भी निश्चित है कि हमे उससे अपने रोजाना जीवन मे व्यवहार के ग्राचरण का निर्णय करने में भी बहुत सहायता मिल सकती है। यहाँ हम एक और दृष्टान्त का सहारा लेते है जिससे इस प्रकार मिलने वाली सहायता का हमे स्पष्ट दर्शन हो जाय । इस हेतु से हम 'वैरिस्टर चक्रवर्ती' नामक एक कल्पित पात्र की सृष्टि करते है । यह नाम यहाँ एक कल्पित पात्र का है | यहाँ जो कुछ लिखा जा रहा है उसका किसी भी जीवित व्यक्ति के साथ, भूत, भविष्य या वर्तमान के ऐसे किसी नाम के साथ कोई सम्बन्ध नही है — इतनी स्पष्टता करके अव हम आगे बढ़ेगे | इन वैरिस्टर साहब मे एक विशेष प्रकार का सद्गुण है | यह गुण है उनकी उदारता ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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