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________________ ०४२ 'उदारता' प्रात्मा का एक गुण है । द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव मे से अात्मा को यदि हम द्रव्य मान कर, उदारता का विचार करे तो उदारता गुरण 'भाव की अपेक्षा मे पाता है। उदारता कोई द्रव्य नहीं है, आत्मा के स्वगुण का स्वभाव का एक अंग है। ____ इसके बावजूद उदाहरण के तौर पर वेरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता को हम एक 'वस्तु' मान कर चलेगे। हम यह प्रयोग सप्तभगी की व्यावहारिक उपयोगिता समझने के लिए कर रहे है। इसके लिए हम पहला वाक्य यो बनाते हैं'वैरिस्टर चक्रवर्ती उदार है।' अब हम 'वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता के लिए द्रव्य क्षेत्र, काल और भाव की चार अपेक्षाएं निश्चित करते हैं। द्रव्य-वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता के लिए द्रव्य, उनके पास ममय ममय पर ( अतिरिक्त ) ववे रहने वाले पैसे अर्थात् धन रूपी द्रव्य है । जव उनके पास वन ( अतिरिक्त ) वचा हुआ पड़ा हो तव उनकी उदारता रूपी वस्तु क्रियाशील बनती है। क्षेत्र-वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता का क्षेत्र उनकी ज्ञाति है। परन्तु इस ज्ञाति मे भी जो गरीब वर्ग है उस क्षेत्र मे ही उनकी उदारता प्रकट होती है, अन्यथा नहीं। काल-वैरिस्टर चक्रवर्ती सुवह नित्यकर्म से मुक्त हो कर अपने मवक्किलो से मिलने तथा कोर्ट-सम्बन्धी कार्य की तैयारी करने में समय बिताते है। दिन के समय वे कोर्ट में मुकदमे लड़ने में व्यस्त रहते है । शाम को कभी-कभी क्लव मे जाकर कुछ देर विज खेलते है। इस बीच कभी-कभी
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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