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________________ २०४ जब हम कहेगे-'द्रव्य की अपेक्षा से', तव हम किसी भी वस्तु मे रहे हुए द्रव्य Substance on basic mate11al को लक्ष्य मे रखकर वात करेगे । उदाहरणार्थ जब हम किसी कुर्सी की वात 'द्रव्य की अपेक्षा से' करेगे तव व्यावहारिक अर्थ मे 'लकडा हमारे मन में होगा। यह लकडा आम के पेड का है, जगली है, सागवान का है या शीशम का, यह बात भी तुरन्त हमारे ध्यान में आ जाएगी।। सोने के किसी अलकार की बात करते समय उसकी आकृति कैसी भी क्यो न हो-पर द्रव्य की अपेक्षा की वात आने पर हम 'सुवर्ण' के मूल स्वरूप की ही बात करते होगे । इसी तरह जब हम क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा की बात करेगे, तव जिस वस्तु की चर्चा हो रही होगी उस वस्तु के अपने क्षेत्र ( स्थान ), काल ( समय ) और भाव ( गुण धर्म ) के साथ उस वस्तु के सम्बन्ध की स्पष्ट जानकारी उसमे से प्रकट होगी, और उसके विरुद्ध-पर द्रव्य, पर क्षेत्र, पर काल और पर भाव की बात भी आएगी ही। ___पहले हम 'उत्पत्ति, स्थिति और लय, का उल्लेख कर चुके है । जैन तत्त्वज्ञानियो ने इनके सामने 'उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य' ये तीन शब्द बताये है, इनका भी उल्लेख हमने किया है। इस त्रिपदी ( तीन शब्द ) के उपर्युक्त दो भिन्न भिन्न शब्दप्रयोगो मे 'अपेक्षा' शब्द का विशेष महत्त्व है । 'उत्पत्ति, स्थिति, और लय इन तीन शब्दो मे किसी प्रकार का आगेपीछे का सम्बन्ध नहीं है, किसी प्रकार का अपेक्षा भाव नहीं है, इसलिए ये शब्द एकान्त सूचक है, यह बड़ी भ्रान्त धारणा है। "उत्पाद व्यय और ध्रौव्य' मे सापेक्षता की अपेक्षाभाव
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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