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________________ २०३ कोप विराट है। इस भाषा की शक्ति भी अपार है। कम से कम बब्दों में अधिक से अधिक बात कहने की गक्ति यदि किसी भाषा में हो तो वह 'सस्कृत' भाषा है। इसमे ऐसे अनेक छोटे शब्द हैं जिन्हे पूर्णतया समझने समझाने के लिए काफी विस्तार मे जाना पड़ता है। उत्तर भारत की लगभग सभी भापायो मे 'अपेक्षा' शब्द उन भापानो का अगभूत शव्द बनकर प्रवेग पा चुका है । उन अलग अलग भापात्रो के बोलने वाले इस शब्द का स्पष्ट अर्थ समझते तो है, फिर भी वे भी दूसरे व्यावहारिक अर्थों में इस शब्द का प्रयोग करते है । हमारी गुजराती भाषा में जो जो मान्य शब्द कोप है उनमे इस शब्द के व्यावहारिक अर्थों का ही उल्लेख किया गया है। 'नव-जीवन प्रकागन मदिर' द्वारा प्रकाशित 'सार्थ गुजराती जोडणी कोप' मे 'अपेक्षा' शब्द का प्राशा, इच्छा, अगत्य, आकाक्षा लिखने के बाद 'क्षित' लगाकर 'अपेक्षावालु" ऐसा अर्थ दिया गया है । यह सव देखने पर प्रतीत होता है कि व्यवहारोपयोगी अर्थ अधिक प्रचलित हुए है। परन्तु यहाँ हम तत्त्वज्ञान के विषय में विचार कर रहे हैं । अत.तत्त्वज्ञान के क्षेत्र मे यह शब्द किस अर्थ में प्रयुक्त होता है सो वात-इस शब्द का रहस्य-समझ लेना विशेष आवश्यक है । जैन तत्त्ववेत्तायो ने 'अपेक्षा' शब्द का प्रयोग निश्चित अर्थ मे किया है। हम 'अपेक्षा' शब्द के लिए • ' के सम्बन्ध मे, ' ...' को लक्ष्य मे रख कर ' ' के आधारपर '" ' के सन्दर्भ मे आदि भिन्न भिन्त परन्तु एक ही अर्थ के सूचक शब्द प्रयोग कर सकेगे।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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