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________________ [ १६० ] 'व्यवहार नय' है। यहाँ प्रात्मा की वर्तमान अवस्था को स्पर्श करने वाली दृष्टि 'निश्चय नय' की अपेक्षा के अधीन रह कर हमे निश्चित स्थान पर पहुंचने का आचरणमार्ग भी बताती है । यह व्यवहार को स्पर्श करने वाली वात हुई। अत जव व्यवहार मे आचरण की वात प्रावे तब हमे निश्चय नय को दृष्टि के सामने रख कर ही अपना आचरण-क्रम Code of conduct निश्चित करना पडता है । निश्चय दृष्टि तत्त्वस्पर्शी पवित्र ज्ञानदृष्टि है। वह हमारे व्यवहार मे प्रविष्ट होने वाली अशुद्धियो को दूर करने तथा रोकने का कार्य करती है। यदि हमारा कार्य-क्रम अपने ध्येय को दृष्टि में रखे विना निर्धारित किया जाय तो उससे कोई लाभ नहीं होता । उसी तरह पारमार्थिक क्षेत्र मे यदि हम निश्चय दृष्टि को दूर कर के बरतने लगे तो खड्डे मे ही गिरेंगे । इसीलिए जैन-नत्त्ववेत्तायो ने कहा है कि मनुष्य को अपना प्रान्तरिक एव वाह्य जीवन भी उच्च और शुद्ध रखना चाहिये । हमारी नजर निश्चय पर हो फिर भी यदि हम व्यवहार को शुद्ध न रखे, अथवा व्यवहार शुभ आशय से युक्त होते हुए भी यदि हम निश्चय पर से अपना ध्यान हटा ले तो ये दोनो ही कार्य हमारे लिए विघातक सिद्ध होगे। ___ ज्ञान तथा विवेक की उपस्थिति मे जो कुछ किया जाता है उसके विषय मे जैन शास्त्रकारो ने कहा है कि 'जे वासवा ते पडिस्सवा, जे पडिस्सवा ते आसवा' अर्थात् आत्मा को कर्म वध करवाने वाले स्थान (ज्ञानी या विवेकी को ) कर्म से छुडाते है और कर्म से छुडाने वाले स्थान ( अज्ञानी या अविवेकी को ) कर्मवन्धन करवाते है।" यह बात अच्छी तरह समझने
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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