SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७१ जाँच करें। सातो के नाम से तो हम परिचित है, यहाँ फिर उनका उल्लेख करते है - (१) नैगम नय (२) सग्रह नय (३) व्यवहार नय (४) ऋजुसूत्र नय (५) शब्द नय (६) समभिरूढ नय (७) एवभूत नय अव हम क्रमश एक एक नय को लेकर सातो का परिचय प्राप्त करेगे । यहाँ यह ध्यान में रखना चाहिए कि 'नय' एक दृष्टि है-वस्तु को देखने की दृष्टि है । इनमे उत्तरोत्तर नय अपने पहले के नय से सूक्ष्म-सूक्ष्मतर दृष्टि वाला है।। (१) नैगम नय-इसकी सक्षिप्त व्याख्या देनी हो तो हम कह सकेगे कि, वस्तु के सामान्य तथा विशेप इन उभय स्वरूपो को जो मानता है परन्तु अलग अलग मानता है वह नैगम ।"अग्रेजी मे हम इसे ( Figurative Knowledge ) कह सकेगे। 'नगम' मे मूल शब्द 'निगम है । न+एक+गम = नैगम । इसमे 'निगम'शब्द का अर्थ होता है, सकरप (निर्णय) । 'निगम' शब्द का अर्थ 'कल्पना भी है । कल्पना से होने वाले व्यवहार को 'नैगम' कहते है। यहाँ कल्पना का अर्थ कोई असत्, काल्पनिक धर्म का स्फुरण नही, परन्तु सत्, वास्तविक धर्म का स्फुरण समझना चाहिए। इस नय मे दो वाते मुख्य है । पहली बात यह कि नय
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy