SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ चलिए, अब हम इन पांचो कारणो की जांच करें। इन पाँचो कारणो का क्रम निम्नानुसार है१ काल (समय-Time) २ स्वभाव ( वस्तु का अपना गुणधर्म-Quality or function) ३ भवितव्यता या नियति ( अगम्य शक्ति- Absti use Potentiality ) ४ कर्म या प्रारब्ध (नसीव-Luck) ५ उद्यम या पुरुषार्थ ( प्रयत्न-Effonts) पाँचो कारणो के ये नाम हुए। इस विषय मे भिन्न भिन्न अभिप्राय प्रचलित है। कई लोग केवल काल को ही कार्य का कारण मानते है। अपने आप को 'स्वभाववादी' कहने वाले मताग्रही लोग प्रत्येक कार्य के लिए केवल स्वभाव को ही जिम्मेदार मानते हैं । जो लोग भवितव्यता-नियति को मानते हैं, वे प्रत्येक कार्य के लिये नियति के सिवा और कोई कारण मानने से इन्कार करते हैं। चौथा मत 'कर्म-कारणवादी' वर्ग का है । ये लोग कर्म के सिवा अन्य किसी वस्तु को कारण रूप मे स्वीकार हो नही करते । जब कि पुरूपार्थ को मानने वाले उद्यमवादी जगत मे वनने वाले मारे कार्य के लिये उद्यम के सिवा और कोई कारण हो नही मानते । जैन तत्त्ववेत्ताओ का कथन है कि, "ये पात्रो कारण प्रत्येक कार्य के पीछे गति देने वाले है, (Gunding force)-जव तक ये पॉचो कारण एकत्र नहीं होते तव तक सामान्यतया कोई भी कार्य नही होता। अब हम 'एक कारणवादी' मत की वात सुने ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy