SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाँच कारण इस दुनिया मे जो कुछ कार्य होता है उसके पीछे कोई न कोई कारण तो होना ही चाहिए, होता ही है । कुछ कारण दृश्य होते है, कुछ ग्रहय, कोई ज्ञात होते है कोई अज्ञात होते है । सूर्य उगता है और ग्रस्त होता है। रात जाती है, दिन आता है, मनुष्य जन्म लेता है, और मरता है । सुख, दुख, गरीबी, अमीरी, तन्दुरुस्ती, बीमारी आदि बातो से लगाकर परमाणु बम तथा हाइड्रोजन बम की उत्पत्ति, अवकाश - उड्डयन, रॉकेट मे से छूटे हुए उपग्रहा का पृथ्वी तथा चन्द्र के चारो मोर उड्डयन- परिभ्रमण - तक की सारी घटनाएँ हम अपनी आँखो के सामने होती हुई देखते है । इस विश्व मे अनादि काल से ऐसे अनेक कार्य होते रहे हैं, हो रहे है, तथा अनन्त काल तक होते रहेगे। इनमे से कई कार्यो के कारण हमे समझ मे आते है, बहुतो के हमे समझ मे नही श्रते । प्रज्ञा को परिमितता ( सीमित बुद्धि) के कारण बहुत सी घटनाओ के कारण हम समझ नही पाते । फिर भी इस विषय में हम सब एकमत है कि इन सब कार्यों के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है । भिन्न भिन्न तत्त्वविशारदो ने भिन्न भिन्न कारण ढूँढ निकाले है | जैन तत्त्ववेत्ताओ ने इन सब के लिए पाँच कारण वताये है । इन पाँच कारणो को अलग अलग तौर पर स्वीकार करने वाले मत भी हैं, परन्तु जैन दार्शनिको का कथन है कि, सामान्यतया ये पाँचो कारण इकट्ठे होने पर ही कार्य होता है । उनका यह दावा है कि सामान्यतया ये पाँचो कारण जब तक साथ नही मिलते तब तक कोई भी कार्य बनता ही नही, होता ही नही ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy