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________________ १३० कालः केवल काल को ही कारण मानने वाले कहते है कि 'प्रत्येक वस्तु अपने समय पर ही उत्पन्न होती है, और अपने समय पर ही नष्ट होती है । गर्भ में से बालक, दूध मे से दही, अनाज मे से रसोई, वीज मे से वृक्ष, वृक्ष मे मे फल आदि सब अपने समय पर ही होता है। चक्रवर्ती, तीर्थकर, अवतार वचपन, यौवन, वृद्धावस्था, जन्म, मृत्यु आदि मव काल के ही विपाक है । काल को छोड कर काई कार्य हो ही नहीं सकता । प्रत्येक कार्य के लिये केवल काल ही जिम्मेदार है।' ये लोग स्वय काल को भी काल का ही कार्य मानते है । स्वभाव -यहाँ फिर याद दिलाने की आवश्यकता है कि स्वभाव से तात्पर्य मिस्टर टॉम, डिक या हैरी नाम धारी व्यक्तियो का भला बुरा स्वभाव नहीं, बल्कि प्रत्येक वस्तु का जो स्व+भाव है, गुणधर्म है, सहज स्वभाव है, उसके अर्थ में 'स्वभाव' शब्द प्रयुक्त हुआ है । 'स्वभाव मे माननेवाले स्वभाववादी लोग' ऐमा मानते हैं कि जगत का कारण स्वभाव ही है । उनका कहना है कि वन्ध्या कभी पुत्र नही जनती, हाथ की हथेली मे, पैर के तले मे या स्त्रियो के मुख पर कभी बाल नही उगते, नीम के बीज मे से आम कभी नहीं उगता, ग्राम की गुटली मे से केले का या नारियल का पेड नहीं उगता, मोर के पख केवल मोर के शरीर पर ही उगते है, सन्ध्या के रग, बवूल के कॉटे, भिन्न भिन्न फल, पर्वत की स्थिरता, वायु की अस्थिरता या चचलता, अग्नि की अव॑ता आदि सब काल का नही वल्कि स्वभाव का ही परिणाम है । अर्थात् स्वभाव के कारण ही होता है ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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