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________________ १२७ मे करते है-एक तो 'स्व-द्रव्य,स्व-क्षेत्र, स्व-काल, और स्व-भाव' और दूसरा 'पर-द्रव्य, पर-क्षेत्र, पर-काल, और पर-भाव । इस तरह प्रत्येक वस्तु का निर्णय करने मे कुल आठ अपेक्षाएँ हुई । ___वस्तु के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा मे जव 'स्व' गन्द जोडा जाता है तब उससे 'अस्ति' अर्थात् 'है' ऐसा निर्देश होता है। उसी तरह इन चारो अपेक्षायो मे जब 'पर' शब्द जोडा जाता है, तब उससे 'नास्ति' अर्थात् 'नहीं' ऐसा निर्देश होता है। तात्पर्य यह कि इन चारो में जब स्व-स्वरूप की अपेक्षा होती है तब हम 'है' ऐसा कहते है, और जब परस्वरूप की अपेक्षा होती है तब हम 'नहीं है' ऐसा कहते है। ___इन चारो अपेक्षाओं के लिए 'चतुष्टय' शब्द प्रयुक्त होता है। चारो का एक साथ उल्लेख करना हो तव इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। 'स्व और पर' गब्दो को चतुष्टय गन्द के साथ लगाकर 'स्वचतुष्टय' और 'परचतुष्टय' ये शब्द प्रयुक्त होते है। इन चारो आधारो की, उनके चार 'स्व-स्वरूपो' की और चार 'पर-स्वरूपो' की विशेप चर्चा सप्तभगी विषयक प्रकरण में की जाएगी। इसके अतिरिक्त, उससे पहले 'अपेक्षा' शब्द की विस्तृत जानकारी के लिए 'अपेक्षा' नामक एक प्रकरण भी आगे के पृष्ठो मे आने वाला है। अत इसका यहाँ सक्षेप मे विवरण किया गया है। जो कुछ ऊपर लिखा गया है, उसे भली भांति सोच विचार कर समझ लेने से वाद में की जाने वाली चर्चा विवेचना को समझने मे हमे बड़ी आसानी होगी । अब हम 'पाँच कारण' इस विषय पर कुछ विचार करे।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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