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________________ ११६ इसलिये हमे यह भी समझ मे या जाएगा कि तत्त्वज्ञान की ( विचार की ) भूमिका पर इस 'स्याद्' के बिना जो कुछ दूसरा है सो सब अज्ञान है । इसी प्रकार धर्म की ( प्रचार की ) भूमिका पर भी स्याद्वाद एक श्रद्भुत "आधार है । यह हमे ससार की सारी विपमतानो को दूर करने के लिए एक प्रभुत कु जी (Master key ) देता है । यह देखना भी वडा रसप्रद और उपयोगी होगा कि, यह स्यादवाद हमे जीवनव्यवहार में किस प्रकार सहायता देता है । यह बात तो निश्चित है कि स्याद्वाद हमे दैनिक जीवन मे भी प्रत्यत उपयोगी और मार्गदर्शक है । इसलिए इसमे सदेह नही कि जीवन की उपयोगिता की भौतिक दृष्टि से इस पर विचार करना हम सब को बहुत प्रिय होगा । इस का विचार करने के पूर्व चार अपेक्षाएँ, पाँच कारण, सात नय और सप्तभगी - इन सब को जरा समझ ले । इसके बाद जीवन मे स्यादवाद की रोजवरोज की उपयोगिता की चर्चा करेगे तो वह अधिक सरलता से ग्रौर शीघ्र ही समझ मे आएगी। व हम द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की चार अपेक्षाएँ समझने का प्रयत्न करते है । 'अपेक्षा' के स्थान पर हम 'ग्राधार' शब्द का प्रयोग करेगे, जो ग्रासानी से हमारी और सबकी समझ मे या जाता है । इस प्रकरण में कुछ बाते बार बार कही गई है । हमारे मस्तिष्क में उन बातो को ग्रच्छी तरह जमाने के प्राशय से ही ऐसा किया गया है, इसलिए पुनरुक्ति दोप के लिए क्षमा माँग कर ग्रव हम ग्रागे वढगे ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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