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________________ चार अाधार पिछले पृष्ठो मे हमने जिन चार अपेक्षाओ-आधारो का बार बार उल्लेख किया है वे चार शब्द "द्रव्य,क्षेत्र, काल और भाव" अव हमारे लिये अपरिचित नही रहे । आगे हम जो अन्य वाते कहना चाहते है उनमे भी ये चार शव्द बार-बार आयेगे । ये चारो शब्द किसी भी वस्तु के विषय मे निर्णय करने के लिये अत्यत आवश्यक आधारस्तम्भ के समान है । इसलिये हमे अब ये शब्द और उनकी उपयोगिता अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए। इनमें पहला प्राधार है 'द्रव्य' द्रव्य का अर्थ है पदार्थ । अग्रेजी मे इसे (Substance) अथवा Matter कहते है । हमे जान लेना चाहिए कि इसमे किस किस वस्तु का समावेश होता है । ‘पदार्थ' शब्द के सामान्य अर्थ मे बहुत से पदार्थ, बहुत सी वस्तुएँ, हम अपने सामने देखते है। हमारे चारो ओर इतनी वस्तुएँ पडी है जिनका कोई पार नहीं । इन सब वस्तुओ के बाह्य स्वरूप को छोडकर जो मूल द्रव्य (Basic material) रहता है उसका 'द्रव्य' नाम से उल्लेख किया गया है। जो द्रव्य या पदार्थ नित्य (Permanent) है, अर्थात् विविध अवस्थाम्रो का वहन करते है, भिन्न भिन्न स्वरूपो मे भी जो मूल द्रव्य के रूप मे कायम रहते है उन्हे हम द्रव्य मानेगे । स्वरूप या अवस्था बदलने पर भी जो मूल द्रव्य कायम रहता है सो द्रव्य । उदाहरण के तौर पर अलकार मे सोना, फरनीचर मे लकडी और घडे मे मिट्टी । पिछले 'परिचय' प्रकरण में जो छ द्रव्य बताये गये है
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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