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________________ 22 विदेशों में जैन धर्म और मुक्ति का विचार भी श्रमण मुनियों एवं राजन्य क्षत्रियों द्वारा वैदिक धर्म से जुडा। श्रमणो में असुर, नाग, सुर (देव). द्रविड, ऋक्ष, वानर आदि सभी शामिल थे। देव श्रमणों में ऋषभदेव और वरुणदेव सर्वोच्च हैं। योगशास्त्र के रचयिता पतंजलि मुनि का भी वैदिक श्रमणो मे अत्युच्च स्थान है। वाल्मीकी मुनि तथा व्यास मुनि तो वैदिक श्रमणों के महाकवि तथा महान् इतिहासकार ही थे। व्यास मुनि का तो वेदों तथा पुराणों के सम्पादक के नाते विश्व के धार्मिक इतिहास मे अनुपम स्थान है। ऋषभ के पौत्र (चक्रवर्ती सम्राट् भरत के पुत्र) मरीचि मुनि ऋषभ देव द्वारा प्रवर्तित श्रमण धर्म में दीक्षित होकर दिगम्बर मुनि धर्म का कठोरता से पालन कर रहे थे, किन्तु कालान्तर मे वे उनके सघ से अलग हो गये, यद्यपि दर्शन और विचार में वे उनके निकट ही रहे। मरीचि से ही हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) का प्रवर्तन हुआ जो उत्तरोत्तर फलता-फूलता गया और उसका भारत व्यापी प्रसार हो गया। वैदिक सस्कृति की भिन्न-भिन्न मुनि परम्परायें श्रमण धर्म के आत्म अहिंसा-व्रत तथा तप के विचार और आचार से प्रभावित रही ज्ञान, मक्ति अध्याय 4 श्रमणधर्मी पणि जाति का विश्व प्रव्रजन पुरा काल के अध्ययन से प्रकट होता है कि ईसा पूर्व चौथी सहस्राब्दि के आरम्भ मे और उसके बाद महान पणि जाति ने गोलार्ध के सभी भागों में शांतिपूर्ण ऐतिहासिक प्रव्रजन किये। इस पणि जाति का अनेकशः स्पष्ट उल्लेख प्राचीनतम वैदिक ग्रन्थ ऋग्वेद की 51 ऋचाओं में, अथर्ववेद में एवं यजुर्वेद (बाजसनेयी संहिता) एव सम्पूर्ण वेदोत्तर साहित्य में हुआ है। ये पणि ऋग्वेदोक्त जैन व्यापारी भारत से गये थे तथा ये अत्यन्त साहसी नाविक, कुशल इंजीनियर और महान शिल्पी थे तथा उन्हे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्टीय व्यापार और वाणिज्य में बड़ा अनुभव और निपुणता प्राप्त थी।
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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