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________________ उचोतकेशरी के अष्टादश वर्ष राजत्वकालमें सुविस्यात जैनसाधु कुलचद्र के शिष्य आचार्य शुभचंद्र तीर्थयात्रा के लिये खडगिरि पाये थे, और वहा वे कत्तियां स्थापन किये थे।माचार्य शमचंद्र के प्रति राजा उद्योतकेशरी का. भव्योपयुक्त. सम्मान प्रदर्शन करना शिलालिपि से जान पडता है। ऊपर लिखी दुई लोचना से मालूम होता है कि मध्ययुगीय डीसा एक समय जैनधर्म ,राजानों को पृष्ठ-पोषकता लान कर सर्वि बत हो सका था! उड़ीसा के साथ धर्म में भी बमवर्म का प्रभाव अन्तिमात्रामें पड़ा था। जैनधर्षका सकि सावन खास कर न होता तो इतना प्रभाव पड़ना सभव नहीं हो सकताथा| पत्ति- युग के अरक्षित, दास पथ और महिमा पंपादि धर्म सस्थानोमें भी जैन धर्मके बहुतसे.प्राचार तत्व और दर्शनकी अभिव्यक्ति मोर.समावेश देखनेको मिलता है। और यह दिखा देता है कि जैनार्म की समृद्धि प्राचीन कालसे बुरू होकर मध्ययुग तक अव्याहत चलती रही की। उड़ीसा सांस्कृतिक जीवन में जैनधर्स किस तरह अपना प्रभाव फैला सका था इस की विशद मालोचना मागे की जायगी . समाज कल माधुनिक युगमें भी उड़ीसा केवी जीवनापर नबर्मका जो प्रमाब, फैल रहा है। यह अनुसंधान की प्रस्तुण्डेय पाव भी खंडपिरि केवल बैनो को नहीं हिंदुजों की भी एक परम पवित्र तीर्थ भूमि है । माघ शुक्ल सप्तमीले हिलाहर साल यहाँ बो मेला लगता है उसमें हजार मात्रीमा कट्टाहोकर सिर्फमरक्षित दासको स्मृतिमा को यह नहीं, बस्किान सीकाडरे की प्रतिमूर्ति पौष उनके शासन देवताओं के उद्देश्य में भी सेवा पूजा करते हैं। .
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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