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________________ तक परिव्याप्त नहीं हुआ था तब उसको उड़ीसा पाने की बात पूरी मिथ्या प्रतीत होती है। इससे मायला पांडिच मुगल प्राक्रमण कुशाण माक्रमण नहीं हो सकता । यह कुशाणके प्रतिति दूसरा कोई वैदेशिक आक्रमण होना निश्चित है · सब डॉ. नवीनकुमार साहू प्रमाणित करते हैं कि 'भावला पांथि वर्णित उड़ीसा में मुगल प्राक्रमण वस्तुतः मुखंड प्राक्रमण ate forत्य होना चाहिये । इन मुरुडोंके बारेमें पुराण, वैन शास्त्र, ग्रीक मौर चेनिक लेखकों के विवरणोंमें उल्लेब मिलते हैं । पुराण-मतसे तुखार (कुशाण) के बाद १३ मुरुड राजाओं ने दो सौ वर्षों तक राजस्व किया था। मुरुड वर्णता से जैनशास्त्र भी भरपूर है; क्योकि मुरुंड राजालोय जंन मौन tree पृष्ठ पोषक थे । • 'सिंहासन द्वात्रिंशिका' नामक एक जैन ग्रन्थ से मिलता है कि मुरुंड गजानोंकी राजधानी कान्यकुब्ज थी, परन्तु कान्य कुब्ज में मुरुड बहुत काल तक राजत्व करते हुये मालूम नहीं होते । सिंहासन द्वात्रिंशिका' पुस्तक में जिस सुकुंडराज का उल्लेख है उसका कुशाणों के अधीन एक सामंत राजा होना निश्चित है । 'बृहत कल्पतर' नामक एक दूसरे जैन ग्रन्थ से मालूम होता है कि मुरुडों की राजधानी पाटलीपुत्र थी। और मुरुड राजा की विधवापत्नी ने जिन-पथ का धवलवन ९ 6. A History of Orissa Vol, Edited by Dr. N.K. Sahu. Pages, 331-335 7. Dynastic History, Kalinga Age, by Pargites, Page. 46 } 8. Dr. Probodh Chandra Bagohi's Speech in Indian History Congress, अभियान राजेन्द्र कोष, भा० २ ० ७७६ 1
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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