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________________ ये वैदेशिक आक्रमणकार कालमें कलिगम जनचमकी हालत कैसी पी नीचे किया गया है । $ 1.2 The "मायला पाजि" का कथन है कि कलियुग पूष्ठिर से लेकर १७ राजामति परम्परिक कु हूँ 113 T. எ5 राजस्व किया था • इस राज परम्पराके वा शोभन देव है । उस समय दिल्लीके भोजक पातिशा (बादशाह) के सेनापति रक्तवाहते 'चिलका देकर उड़ीसा पर माक्रमण किया था । बादको प्रष्टादशराजा के समय में उड़ीसा पूरी तरह मुगलोंके हस्तगत हुआ था, मुगलोंने उड़ीसा ४७४ ई० व २४६ वर्ष रात्व किया था और इसके बाद यवातिकेशरी ने उनको परास्त करके भगा दिया था । यही है 'मादला पोि वर्णित उपाख्याने ! X 1 *** f इसमें कुछ काल्पनिक विषय होने पर भी मूलतः यह एक ऐतिहासिक सत्यके ऊपर प्रतिष्ठित हुवा मालूम पड़ता है क्यों कि प्राचीन उड़ीसा में एक विदेशी राजवंश की बहुतसी मुद्राय सब मिली हैं। इन सभी मुद्राद्योंकी तैयारी कुशाण मुद्राकी तरह होने से पुरातत्वविदों ने उनको "कुशाण मुद्रा" कहा है। पहले पुरीके भासपास ये मुद्रायें खूब मिलती थीं । १६ वीं शताब्दी के मुद्राविद् - जैसे हर्णले और रेपसन दोनों इन मुद्राओंोंको "पुरी 忘 कुशाण मुद्रा" कहते हैं। उनके मतानुसार इन मुद्राओं का प्रथ लन यहां के किसी राजवंश द्वारा नहीं हुमा था। पुरी जग नाथ महाप्रभूके दर्शनके लिये माते हुये प्रसंख्य यात्रीयोंके वे सब मुद्रायें यहाँ लाई गयीं थी । पुरीके पासपास समय ये मुद्रायें मिलती थी उस समय इन पंडितों की युक्ति 2 Prooeedings of Asiatic Society, Bengal, 1895 DH Page 63. I ८ 1 416 4 | 2
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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