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________________ उसके महनेमिविवि edy वस्तु स्विका (Previcnally m पहले से मान सकता है। शोकने जिस कि इसीलिए कि उसके पहले किसी मी उसपर 'किया था नन्दवंशीय राजत्व-खसम्म होते होते ने 'आपकी स्वतन्त्र' कर दिया था स्वाचीन कलिंग पर ई० पू० २६१ मे प्रशोक ने चढाई की थी। पर कैलिपर विजय प्राप्त करना सहन साध्य नहीं था । शेरहवें पशिलालेख पर प्रशीकने कलिक्युका भयावह तथा ममन्तिक 'है।" "तः प्रवश्य उन्होंने स्वाधीनता प्रिया कलिंग प्रवासियो को अपने देश में मिलाकर शान्ति तथा कृप्ति पायी होगी । अविजित कलिंग पर विजय प्राप्त करनेकी उक्तिमें अशोकका साम्राज्यवादी ग्रह विद्यमान है । इसका पूर्ण प्रमाण हम उसके 'द्वादश शिलालेख से प्राप्त होता है । नन्दसमा के द्वारा कलिंग forfen होने की बातसे अशोक पूर्ण भावसे चित + रहते हुए भी कलिंगको 'अजेय' बताकर उन्होंने अपनी 'हमका पराक्रम तथा मात्मगौरव का ही परिचय दिया है। पतः डा० पाणिग्राही का इसे ज्यादा महत्वादेा उचित नही हुआ है । 'तिवससत को १०३ वर्ष प्रमाणित करने के लिए प्रशोक की नन्दराजा के समयमें ग्रहण करना सही नहीं है - 14 डॉ. दिनेशचन्द्र सरकार ने कहा है कि संभवत हाथी शिलापि प्राचीनता की दृष्टिसे नामाचोट शिलालिपि और मवश्य ही वेसनगर की शिलालिपि के बाद की है। इसमें कोई संदेह, रमेकी बात नही है १४ रमाप्रसादचन्दने भी ब्राह्मी 4 52 Corpus Inscriptionum Indioarum I 54 M. A. 8. I. No 1.1 -१२
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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