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________________ त्याला एकसमयाव्यावसामानते हैं | kulkasha to मी बिताताप्रमपूर्ण मालूम पडती हैन म सम्बत कार में कोई प्रमाण विना पाडाजायसवालमा बनर्जी के मतों को अहणकरना समुचित नहीं बन पडता है। प्रतएक तिवसमत को के में अहम करना धार्षिक प्रामाणिक पौराणिक किम्बदतियों से भी सारवेल समसामयिक रेमा सातकर्णी का नन्दराज के वर्षों के बाद ही राजस्व करने की बात ज्ञात होती है। हमापी का २३७ बर्ष + सुमी ११२+कायों का २१ वर्ष संप्रमाण से नन्दवका पतनके ६४ वर्ष बाद ही सातवाहन र्शका प्रारम्भ होना सूचित होता है । डाकरायचीवरी इससे पूरे हमत है। फिर अगर तिवसत"को १० वर्ष मानस जाए तो नन्दसला के ६४ वर्ष के बाद ही सारवलने सिंहासनारोहण किया था! यह स्वीकार करना पडेगा. ३-५९८) ऐसी 'गणना से फिर दूसरे ढंग के विचार की दृष्टि होगी। क्योंकि नन्दवंशके किसी भी वर्ष से तिवससता को वर्ष, मांवकर 'परिगणना करने पर को समय निकलेगा उससे कलिंग मनके प्राचीन-पायहीं प्रमाणित होगा, लोकाशिलालेखोनियह प्रमाणित होगा कि उस समय नेपालिहवार सोमपाकर मयों का शासन चल रहा था और कलिगमें किसी चक्रवर्तीका प्रभ्युदय नहीं हुआ थापत तिवसंसत को ३.०,मानना चाहिए। 40 Age orimperist tity-Chapter on the Sate. vahanas by Dr.D.Sirosr. 41 P.H A. I 229 ff int 42 0. H. R.J. Vol IIIne: 2page 92 .
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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