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________________ कि पूर ( पू०३२४-११ - पू. w) सिस्काने ममय मधिकार कर लिया था कि के और १८ वर्षतक कृष्णा बाबत्व करने के बाद ही सावक्रमी नहीपर बैठे अगर ई.पू. ३० को हम सिकका शेष वर्ष बाने तो सातकर्णका सिंहासनारोहण कालकोई पू०१२ मानना पड़ेगा (ई० ३०-१८-ई० पूर्व १२) अगर यह सही हो तो वह बारवेलके रापन कालका दूसरा वर्ष है अर्थात् ई.पूर्व १४ सामोस कतिबके सम्राट बने थे . . . . हत मित्र-हाथीगुफा शिलालेखसे शात होता है कि खारवेल ने अपने राजत्व कालके . १२ वर्ष में मगधाधिपति बृहस्पति मित्रको युद्ध में परास्त किया था। "प्रग, प राजानं वृहस्पति मित पादे दलापपति" हाथोगुफाके अतिरिक्त अन्य पांच शिलालेखों में हम वृहस्पतिका नाम पाते है:--- Frt (१) मधुरा के पास मोरा नामक गांवमें शिलालेखपर वृहस्पति जिनका नाम उल्लिखित है । इस बृहस्पति मिन की कन्याका नाम था शमिता। १२) इसाहाबादके पास पाफोसा शिलालिपिके लेख पर किस वृहस्पति मित्रका पता मिलता है, उनके मामा मामाद हेन । (३) कौसाम्बी से प्राप्त मुद्रामोके प्राधारसे कमसे कम से बृहस्पति मित्रोंका रहना हम अनुमान करते है। 15. Age of Imperial Unity, P. 185.8 16. O.H.R.I, Vol III No.2BRO. . 17. Hathiguladharinsornptioneithela 18. Vogel.J.R.A.S. 1912 PartialP.420. 19. Ep. Indion Vol II P.241. 20. C.C.A.L. London-P.XOWI (Kosambi Coin):
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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