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________________ प्राचीन संस्कृति का घनिष्ठ संपर्क रहा है । उदयगिरि और खडगिरि की गुफापो में भ० महावीर की भूत्ति मौर कथावस्तु ने अन्य तीर्थंकरो से अधिक विशिष्ट स्थानका अधिकार किया है। किंतु खंडगिरिमे ठोरठौर पर भ० पार्श्वनाथको ही मूल नायक के रूपमें सम्मान प्रदान किया गया है। निस्सदेह कलिंग के साथ म०पानाथका जो संपर्क है उसका दिग्दर्शन पूर्व अध्याय में सुचित, हुमा है। प्राच्य विद्या-महार्णव श्री नगेन्द्रनाथ वसु ने "जैन भगबती सूत्रजन क्षेत्र समासः' मोर भावदेव के द्वारा लिखी गयी "२४ वीर्घको की जीवनी"की मालोचनासे सबसे पहले कहा है कि भ० पार्श्वनाथने अंग वंग मोर कलिंग मे जैनधर्मका प्रचार किया था। पर्म प्रचार के लिये उन्होने ताम्रलिय बन्दरगाह से कलिंगके मूभिमुख पाते समय कोपकटक में पत्य नामक एक गृहस्थका प्रातिथ्य ग्रहण किया था। बसु महोदय के मतके अनुसार यह कोपकटक बलेश्वर जिलाका कुमारी ग्राम है। मोम ताम्रफलक से मालूम होता है कि ८वी सदीमे यह छुपारीग्राम कोपारक प्रामक रूपमे परिचित था।' म. पानांप गृहस्प धन्यके घरमें मतिथि हुए इस घटनाको स्मरणीय करने के लिये कोपकटक को उपरान्त धन्यकटक कहा जाने लगा था । बसु महोदयने इस विषय में प्रषिक प्रकाश डालते हुए लिखा है कि उस समय मयूरभज मे कुसुम्ब नामक एक क्षत्रिय जातिका राजत्व था और बह राजवश म० पाश्वनाम के प्रचारित धर्मसे अनुप्राणित हुमा वा । यह विषय बसु महोदय को कहां से मिला हमें मालूम नहीं है। म. पाश्र्वनाथ के बाद भ. महावीर जैनधर्म के प्रन्तिम तीकरके स्पावित हुए थे। जैनियों के "आवश्यक सूत्र" में लिखा हुमा है कि म. महावीर ने तोषल में अपने 3 Neil Pur Copper Plate
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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