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________________ ३. कलिंग में आदि जैनधर्म जैनधर्ममें जो २४ तीर्थकरों की उपासना की विधि है उन में से कितने ऐतिहासिक महापुरुष और कितने काल्पनिक महा पुरुष थे उसको युक्ति युक्त समीक्षा अभी तक नहीं हो सकी। धर्म के स्रोत में डगमगाने से वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार उस की उपयुक्त मीमांसा हो नहीं सकती। ऐतिहासिक जैकोबी पौर अन्य पण्डितों ने जैन शास्त्रों की आलोचना से सिद्धान्त निर्धारित किया है कि पार्श्वनाथ से जैनधर्मका प्रारंभ हुपा। ऐतिहासिक भित्ति के माधार पर पार्श्वनाथ ही जैनधर्मके प्रथम प्रवर्तक के रूपमें माने जाने चाहिये ; परंतु साथ ही जैकोबीने यह भी माना कि जैनोको २४ तीर्थङ्करों की मान्यता में तथ्य होना चाहिये प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की ऐतिहासिकता भी स्थ्यपूर्ण हो सकती है। भष्पार्श्वनाथ को जैनधर्मका प्रवर्तक मानने में किवदन्वी और इतिहास दोनों सहायक होते है। भ० पाश्वनाथ जैनधर्मके मादि प्रवत्तंक हों या न हो, इसमे सदेह नही है कि उन्होंने सबसे पहले कलिंगमें जैनधर्मका प्रचार किया था। भ० पार्श्वनाथ के नामके साथ कलिंगकी - 11. A. II Page 261 and Vix Page 112 इस प्रसंब, मे सर पासुतोष मुखार्षि Silver Jubilee YONIEL Page 7482 देखिये। 20. H. B.J. Vol. vi. Page 79.
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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