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________________ १६ सम्यक्चारित्र-चिन्तामणिः चारित्र नहीं होता है-ऐसा आगममें उल्लेख है। आत्माका वीतरागता रूप जैसा स्वरूप माना गया है वैसा जिसमे प्रकट हो जाता है वह यथाख्यात चारित्र कहलाता है। मोहनीय कर्मका क्षय अथवा उपशम हो जानेपर नियमसे यथाख्यात चारित्र प्रकट होता है। भावार्थ-औपशमिक और क्षायिकके भेदसे यथाख्यात चारित्र दो प्रकारका है। उनमेसे औपशमिक ययाख्यात सयम उपशान्त मोह नामक ग्यारहवें गुणस्थानमे होता है और क्षायिक यथाख्यात क्षीणमोह बारहवे गुणस्थानसे लेकर चौदहवे गुणस्थान तक होता है ।। २६-२८ ॥ आगे सयमसे पतित होकर पुन सयमको प्राप्त होनेवाले मुनियोके करणो का वर्णन करते है संयमात्पतितो मयंस्तीवसक्लेशतो विना। पुनश्चेत्सयम गच्छेत् नाऽपूर्वकरण श्रयेत् ।। २९ ।। यश्च सक्लेश बाहुल्यात्पतित्वाऽसयम गतः। भूयश्चेत्सयम प्राप्तः स कुर्यात् करणद्वयम् ॥ ३० ॥ अर्थ-जो मनुष्य तोव सक्लेशके बिना संयमसे पतित हो पुन सयमको प्राप्त होता है वह अपूर्वकरण नामक करणको नही करता है और जो सक्लेशकी बहुलतासे पतित हो असंयमको प्राप्त हुआ है वह यदि पून. सयमको प्राप्त होता है तो करणद्वय-अध प्रवृत्त और अपूर्वकरण नामक दो करणोको प्राप्त होता है। भावार्थ-सयमको प्राप्त हुआ मनुष्य बहुत सक्लेशको प्राप्त हुए बिना परिणामवश कर्मोंको स्थितिमे वृद्धि किये बिना यदि असंयमपने को प्राप्त होकर पुन सयमको प्राप्त होता है तो न उसके अपूर्वकरण परिणाम हो होते हैं और न स्थितिकाण्डक घात तथा अनुभाग काण्डक घात । किन्तु जो संक्लेशकी अधिकताके कारण मिथ्यात्वको प्राप्त होनेके साथ असंयमको प्राप्त होकर अन्तर्मुहूर्त बाद या दीर्घकाल बाद सयमको प्राप्त होता है तो उसके अधःप्रवृत्त और अपूर्वकरण नामक दोनो करण होते है तथा यथाख्यात स्थितिकाण्डक घात और अनुभागकाण्डक घात भो होते हैं ।। २६-३० ॥ आगे सयमको प्राप्त हुए मनुष्योकी प्रतिपात, प्रतिपद्यमान और अप्रतिपात अप्रतिपद्यमानके भेदसे तीन स्थानोका वर्णन करते हैं प्राप्तसयममानां प्रतिपातादिभेदतः । त्रिप्रकाराणि धामानि वणितानि जिनागमे ॥३१॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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