SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय प्रकाश संक्लेशस्य हि बाहुल्यात् पतन्तो मानवा यदि । अधःस्थाने समायान्ति होयमान विशुद्धितः ॥ ३२ ॥ पचमं वा तुरीयं वा प्रथमं वा समागताः । प्रतिपाताभिधानेन कथ्यते तम्महर्षिभिः ॥ ३३ ॥ संयमं प्रतिपद्यन्ते यत्र धामनि सस्थिताः । प्रतिपद्यमानं प्रोक्तं तद् धामपरमागमे ॥ ३४ ॥ एतद्द्वयातिरिक्तानि वृशस्थानानि यान्यपि । लग्धिस्थानाभिधानानि कथ्यन्ते तानि सूरिभिः ।। ३५ ।। अर्थ- संयम प्राप्त करने वाले मनुष्यों के प्रतिपात आदि-प्रतिपात प्रतिपद्यमान और अप्रतिपात - अप्रतिपद्यमानकी अपेक्षा जिनागममे तीन प्रकार के स्थान कहे गये है । संक्लेशकी बहुलतासे घटती हुई विशुद्धिसे नोचे पडते हुए मनुष्य यदि नीचे आते है तो पञ्चम चतुर्थं अथवा प्रथम गुणस्थान मे आते हैं । उनके ये स्थान महर्षियोके द्वारा प्रतिपातस्थान कहे जाते हैं और जिस गुणस्थानसे मनुष्य संयमको प्राप्त होते है वे प्रतिपद्यमान कहलाते है तथा इन दोनोसे अतिरिक्त जो संयम स्थान है वे आचार्यों द्वारा लब्धिस्थान कहे जाते हैं । १० भावार्थ- संयमको प्राप्त हुए जोवोके संयमस्थान तोन प्रकार के हैं - १ प्रतिपात स्थान, २. प्रतिपद्यमान स्थान और ३ अप्रतिपातअप्रतिपद्यमान स्थान । सयममे स्थित जीव सक्लेशको बहुलतासे गिरकर जिन संयमासंयम, अविरतसम्यग्दृष्टि अथवा मिध्यादृष्टि अवस्थाको प्राप्त होते हैं वे प्रतिपातस्थान कहलाते हैं और जिनमे स्थितजोव विशुद्धता की वृद्धि से संयमको प्राप्त होता है उन्हे प्रतिपद्यमानस्थान कहते है। तात्पर्य यह है कि विशुद्धताकी हानिसे जहा गिरकर आता है वे प्रतिपात स्थान हैं और विशुद्धताकी वृद्धिसे जोव जिस स्थान से संयमको प्राप्त होता है वे प्रतिपद्यमान स्थान है । प्रतिपात स्थान संयमसे गिरते समय होता है और प्रतिपद्यमान स्थान संयम प्राप्त होनेके प्रथम समयमे होता है। इन दोनोके अतिरिक्त अन्य जितने चारित्रके स्थान हैं वे सब लब्धिस्थान कहलाते हैं ॥ ३१-३५ ।। आगे मोहनीय कर्मकी उपशमनाका वर्णन करते हैं मोहनीयस्य retreat कार्य यमाणमं प्रवक्यामि संक्षेपेण कर्मणः । यथावति ।। ३६ ।।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy