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________________ द्वितीय प्रकाश ... १५ आगे सूक्ष्मसाम्पराय संयमका वर्णन करते हैं अपकणिमारुतुः क्षपणाविधिमाधितः । क्रमशः अपयन् वृत्त-मोहं दशममाश्रयेत् ॥ २१॥ आरुह्योपशमश्रेणी कश्चित्कर्ममहीपतिम् । शमयन् वृत्तमोहाल्यं दशमं गुणमाश्रयेत् ॥ २२॥ दशमं धामसम्प्राप्तः सूक्ष्मसंज्वलनो भवेत् । श्रेणीयुग्मं समारोद शक्तः क्षायिकदृग्भवेत् ॥ २३ ॥ अन्यस्तूपशमश्रेणीमेवारोढुं समर्थकः । आद्योपशमयुक्तो वा वेदकेन युतोऽपि वा॥२४॥ कामपि श्रेणिमारोढुं नैव शक्नोति जातुचित् । एतद्वत्त नियोगेन केवले दशमे भवेत् ॥ २५ ॥ अर्थ-क्षपकश्रेणोपर आरूढ तथा क्षपणाविधिको प्राप्त हुए मुनि क्रमसे चारित्र मोहका क्षय करते हुए दशम गुणस्थानको प्राप्त होते है और कोई मुनि उपशम श्रेणोपर आरूढ होकर चारित्रमोह नामक कर्मों के राजाका क्रमसे उपशम करते हुए दशम गुणस्थानको प्राप्त होते हैं। दशम गुणस्थानको प्राप्त हुए मुनि सूक्ष्मसंज्वलन-सूक्ष्मसाम्पराय संयमके धारक होते हैं। इस संयम वालेके मात्र सज्वलन लोभका सूक्ष्म उदय शेष रहता है। क्षायिक सम्यदृष्टि मनुष्य दोनो श्रेणियोपर आरूढ होने में समर्थ रहता है परन्तु दूसरा-द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि मनुष्य केवल उपशम श्रेणोपर ही चढनेमे समर्थ होता है। प्रथमोपशम सम्यग्दृष्टि और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य किसो भो श्रेणोपर चढनेमें कभी समर्थ नहीं होता। यह सूक्ष्मसाम्पराय संयम नियमसे मात्र दशम गुणस्थानमे होता है ॥ २१-२५ ॥ आगे यथाख्यातचारित्रका वर्णन करते हैं इतोऽग्ने स्याद् यथाख्यातं चारित्रं शिवसाधनम् । मोक्षे किमपि चारित्रं नास्तीति समये स्थितम् ॥ २६ ॥ आत्मनो बीतरागत्वं स्वरूपं यादृशं मतम् । तादृशं यत्र जायेत तब् पयाख्यातमुच्यते ॥ २७ ॥ भीणे वा युपशान्त वा मोहनीयायकर्मणि । चारित्रं च यथाख्यातं प्रकटीमवति ध्रुवम् ॥ २८॥ अर्थ-सूक्ष्मसाम्पराय संयमके आगे-दशम गुणस्थानके आगे मोक्षका साधन स्वरूप प्रथाख्यात चारित्र होता है। मोक्षमे कोई भो
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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