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________________ चौथा सर्ग जो, गज ऐरावत सा देखा उसका फल उत्तम जानो तुम । इस क्षण से एक सुलक्षण सुत - की माता निज को मानो तुम || अब सुनो, स्वप्न में जो बात विशेष वह सुत की धर्म की ही सामर्थ्य तदनन्तर जो वह सिंह दिखा, उसने भी यही बताया है । निस्सीम शक्ति की धारक उस, गर्भस्थित शिशु की काया है ।। दृष्ट वृषभ, बताता है । धुरंधरता - दिखाता है । पश्चात् दिखी जो लक्ष्मी है, वह भी देती सन्देश यही । होगा चिर मुक्ति स्वरूपा उस लक्ष्मी का भी प्राणेश यही ॥ सुरभित सुमनों की माला ने, भी यह ही निस्सन्देह कहा । जग में प्रसिद्ध हो पायेगा, वह जगती भर का स्नेह महा || १३१
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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