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________________ १३० परम ज्योति महावीर बोले-'लो सुनो, सभी स्वप्नोंका फल मैं तुम्हें सुनाता हूँ। तुम भी प्रमोद से फूल उठो, मैं फूला नहीं समाता हूँ। सब सविस्तार बतलाता हूँ, मुझको जो कुछ भी ज्ञात हुवा । जिसकी कि कल्पना करने से, रोमाञ्चित मेरा गान हुवा ।। इस युग के अन्तिम तीर्थकर, तव कान्त-कुक्षि में श्राये हैं। उनके गरिमामय गुण ही इन, स्वप्नों ने हमें बताये हैं ।। अब मैं क्रमशः सब स्वप्नों के मुखकर रहस्य को खोलगा , प्रत्येक स्वप्न का फलादेश, मैं पृथक् पृथक् ही बोलँगा ॥ षोडस् स्वप्नों के हित प्रयोग, होगा बस घोड़स छन्दों का। इतने में ही सब समाधान, होगा तव अन्तर्द्वन्दों का ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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