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________________ १३२ इसके उपरान्त दिखी तुमको जो पूर्णाकृति रजनीश कला । वह सूचित करती मोह- तिमिरको देगा वह योगीश जला || तदनन्तर दिया दिखायी जो द्य ुति शाली दिव्य दिनेश स्वयं । वह कहता ज्ञान-प्रकाशन कर, होगा वह सुत ज्ञानेश स्वयं || फिर मीन युगल भी जो तुमको, सपने में अपने पास दिखा । तुम समझो उसके छल से ही, सन्तति का भाग्य विकास दिखा || परम ज्योति महावीर जो जल मय पूर्ण कलश देखे, उनने भी यही बताया है । वह सुख की प्यास बुझाने को, अमृत-घट बन कर आया है || जो दिखा सरोजमयी सरवर, उसने भी बारम्बार उसको सहस्र से आठ अधिक, श्रद्दा | शुभ लक्षण का श्रागार कहा |
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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