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________________ ८ कर्मठता, तव कार्य कुशलता, नैतिकता पर विश्वास मुझे । श्रतएव कार्य यह तुमसे ही, करवाने का उल्लास मुझे || श्री, सबको ज्ञात तुम्हारी निज, ', कर्त्तव्य पालने की शैली । बस, इसी हेतु तव कीर्त्ति-कलाभी दशों दिशाओं में फैली ॥ इसके - एवं है तुममें हो सम्पादन की भी शक्ति सभी । इसके अतिरिक्त अबाधित है, तव धर्म - - भावना भक्ति सभी ॥ अतएव अधिक दिखता है कोई परम ज्योति महावीर समझाने में, सार नहीं | को, आशा है, मेरे वचनों तुम समझोगे गुरु भार नहीं || केवल इतना ही नहीं, अपितु - हो मेरे तुम्हीं प्रधान सखा । हर समय तुम्हां ने मेरी हर चिन्ता हरने का ध्यान रखा ||
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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