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________________ दूसस सर्व अब अच्युतेन्द्र को छ: महीनेही रहने का अधिकार यहाँ । जो रहा मनस्वी इतने दिन, बन सुरपुर का शृङ्गार यहाँ ॥ इसके उपरान्त सुरेश्वर यह, निज वर्तमान तन छोड़ेगा । औ, कुण्ड ग्राम की महिषी से जननी का नाता जोड़ेगा ॥ पर राज पुत्र भी हो जीवन, सुख में न व्यतीत करेगा यह । निज वीतरागता से रविपतिको भी भयभीत करेगा यह ॥ हो साधु पुनः कैवल्य-कला, पायेगा त्रिशला नन्दन यह । पा इसे शान्ति की गीता को, गायेगा ताप निकन्दन यह ॥ जन जन तक पावन धर्मामृत, पहुँचायेगा जगदीश यही । करुणा की विजय पताका भी, फहरायेगा योगीश यही ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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