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________________ ५६६ चुपचाप बैठ कर सुनते थे प्रभु का पावन उपदेश वही । नर पशु के विविध खिलौने भी रखने का है उद्देश यही ॥ वहाँ देवों ने बरसा रत्न प्रभु का निर्वाण मनाया था । निर्वाण भूमि को भी उनने सोल्लास विशेष सजाया था । इस कारण खील बताशे ही बाँटा करते नर-नारी अब 1 औ' चित्रों से चित्रित करतेहैं गृह की भित्ति टारी व ॥ परम ज्योति महावीर उस दिन से 'पावा' के रज कण शुभ तीर्थ समान पवित्र लगे । रख गयीं मन्दिरों में प्रतिमा भवनों में उनके चित्र टँगे || अनूप स्तूप, संस्मारक रूप 'पावा' में गया बनाया था । उनकी संस्मृति में राज्यों में सिक्का भी गया चलाया था ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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