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________________ ५६७ तेईसौं सर्ग श्री 'वर्धमान' इस पुण्य नामपर 'वर्धमान' था नगर बना । औ' 'वीर' नाम पर 'वीरभूमि' नामक पुर अतिशय सुघर बना ॥ प्रभु के विहार का प्रमुख क्षेत्र था, अतः 'विदेह' 'बिहार' बना । निर्वाण-दिक्स वह भारत का राष्ट्रीय महा त्योहार बना ।। शुभ वर्ष छियासी चौबिस सौका समय अभी तक बीत गया । कार्तिक शुक्ला से होता है संवत् प्रारम पुनीत नया ॥ बदला करता हर वर्ष 'वीरसंवत् ही इस दिन मात्र नहीं। व्यापारी इस दिन ही बदलाकरते अपने मसिपात्र वहीं । जब 'महावीर' निज अष्ट कर्मका पुञ्ज नष्ट कर मुक्त हुये। तब 'गौतम' गणधर 'वीर-संघ' के नायक प्रमुख नियुक्त हुये ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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