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________________ तेईसवाँ सर्ग श्रतएव भवन से कुटियों तक का कर्कट टाला जाता है । शुद्धि हेतु हर गृह में गृह की मल सभी निकाला जाता है || उस दिन ही केवल ज्ञान रूप लक्ष्मी पायी थी गौतम ने । जिसकी देवों ने पूजा कीं पर भ्रान्त किया जग को भ्रम ने || वह गृह - लक्ष्मी कर लेता है संज्ञा 'गणेश' है गणधर की होता उनका जयघोष अतः ॥ की पूजा कर सन्तोष श्रतः । प्रभु 'महावीर' के समवशरण में थे बारह कोठे सुन्दर | जिनमें मुनिराज श्रर्यिका श्र " श्राविका, ज्योतिषी, सुर, व्यन्तर ॥ सुर इन्द्राणी, भवननिवासी शशि, सूर्य श्रादि भी देव सभी । विद्याधर, मानव, सिंह आदि पशु पक्षी आ स्वयमेव सभी ॥ "
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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