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________________ ५८६ सबने श्रद्धा से प्रेरित हो, निज कर्त्तव्यों का भान किया । सोल्लास नगर की सज्जा में सबने सहयोग प्रदान किया || अविलम्ब हुवा गृह द्वारों का बन्दनवारों से अलङ्करण । हर चौराहे पर द्वार बने, बँध गयीं ध्वजायें चित्तहरण || कर स्वच्छ सुगन्धित जल द्वारा दी गयी सींच हर राह वहाँ । यों विविध उपायों से नगरी दी गयी सजा सोत्साह वहाँ || परम ज्योति महाबीर श्राभरण वसन सत्रने पहिने अपने पद के अनुरूप नये । यों सजधज अपनी प्रजा सहित प्रभु-वन्दन को वे भूप गये || का दर्शन कर 'सन्मति' जिनेश हर्षित अत्यन्त नरेश हुये । रह शान्त उन्होंने सभी सुने जो वहाँ धर्म-उपदेश हुये ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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