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________________ ५८४ परम ज्योति महावीर फिर कर प्रस्थान 'अपापा' पुरमें वे निष्पाप पधारे थे । धर्मोपदेश सुन यहाँ सभीने ब्रत नियमादिक धारे थे | प्रभु ने प्रसङ्गवश कालचक्रका वर्णन यहाँ सुनाया था। जग के दुःखों औ' भ्रमणों का भीषण तम रूप दिखाया था । सुन जिसे अनेक मनुष्यों ने होकर विरक्त यम-नियम लिये। जिस विधि से प्रभु ने बतलाया अाचरण उसी विधि स्वयम् किये ॥ था नाम 'अपापा' पर यथार्थमें अब वह नगर अपाप हुवा । गृह गृह में होने लगा पुण्य मुख बढ़ा, दूर सन्ताप हुवा ।। कोई भी वणिक न करता था अब पापमयी व्यापार वहाँ । परिपूर्ण रूप से किया गयाथा पावन धर्म प्रचार वहाँ ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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