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________________ तेईसव सम वर्षा समाप्ति पर 'मिथिला' से चल 'मगध' र पर्यटन किया । जागृति का शंख बजाते यो फिर 'राजगृही' को गमन किया || श्री 'अग्निभूति' श्रौ' 'वायुभूति' नामक गणधर ने नश्वर तन । परित्याग मोक्ष को प्राप्त किया, कर एक मास का शुभ अनशन || यह प्रभुवर ने यहीं अगणित भव्यों के पावन वैराग्य इकतालिसव चतुर्मास बिताया था । अन्तस्‍ में था ॥ जगाया वर्षा व्यतीत हो जाने पर भी नहीं कहीं प्रस्थान किया । रह यहीं महीनों जनता का कल्याण किया, उत्थान किया || 'अव्यक्त' 'अकम्पिक' 'मौर्यपुत्र' 'गण्डिक' गणधर ने देह यहीं । इस बीच त्याग निर्वाण प्राप्तकर लिया करो सन्देह नहीं || વક્ત
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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