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________________ ५५२ परम ज्योति महावीर उन 'परम ज्योति' ने जड़ता-तम हर कर सब्दोध-प्रकाश दिया । नैतिकता से पतित मनुष्यों के भावों में परम विकास किया । वर्षा व्यतीत हो जाने पर 'चम्पा' की अोर विहार किया । आकर 'चम्पा' के राजपुत्रने श्रमण धर्म स्वीकार किया । पश्चात् 'वीतभय' नगर श्रोर उन 'परम ज्योति ने किया गमन । ली भूप 'उदायन' ने दीक्षा कर प्रभु-चरणों में प्रथम नमन ।। यो जहाँ पहुँचते 'वीर' वहींके नृप बनते अनुगामी थे। क्रमशः अधिकाधिक लोकमान्य होते जाते वे स्वामी थे । पश्चात् 'वीतभय' पत्तन से 'वाणिज्य ग्राम' की ओर चले । पथ में उपदेशों से जनताको करते हर्ष विभोर चले ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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