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________________ इक्कीसवाँ सर्ग 'वाणिज्य ग्राम' श्रा पूर्ण किये, वर्षा के महिने चार वहीं । श्रौ' इस सत्रहवें चतुर्मास - में किया विशेष प्रचार वहीं ॥ थीं वहाँ जिसे वे सब प्रभु ने हिंसा को मिटा जय ध्वजा वहाँ फिर गये 'बनारस' को, पथ मेंशिवपुर का मार्ग बताते वे । हर मानव को मानवता का - पावनतम पाठ सिखाते वे | -- शङ्काएँ जो सुलझायीं थीं। अहिंसा की फहरायी थी । प्रभु में प्रति भक्ति दिखायी थी, राजा 'जितशत्रु' प्रतापी ने । उपदेश श्रवण कर पुण्य कर्म----- की शिक्षा ली हर पापी ने ॥ बहुतों ने अपने जीवन में धार्मिक सिद्धान्त उतारे थे । 'चुलनी' 'श्यामा' औौ' 'सुरादेव' 'धन्या' ने अबत धारे थे || ३५ 3
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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