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________________ ५५१ इस्कीसवाँ सर्ग 'वाणिज्य ग्राम' से निजविहार फिर 'मगध भूमि' की ओर किया । उपदेश सुनाकर नगरों की जनता को हर्ष विभोर किया ।। पश्चात् 'राजगृह' पहुंचे थे, सारी जनता एकत्र हुई। अतिशय प्रभावना प्रवचन से उस समय वहाँ सर्वत्र हुई ॥ श्री 'शालिभद्र' और 'धन्य' आदिने मुनि पद अङ्गीकार किया। एवं गृहस्थ का धर्म कईही भव्यों ने स्वीकार किया ॥ गँजी थी सार, 'राजगृही' प्रभुवर के जय जयकारों से । पड़ता प्रभाव था सब पर ही, उनके पावन उद्गारों से ॥ रुक यहीं पूर्ण इस सोलहवें निज चतुर्मास का काल किया । दुष्टों का जीवन सज्जनताके नव साँचे में ढाल दिया ।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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