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________________ ५५० यों कर विहार 'भावास्ती' में, पहुँचे वे श्रात्मविहारी थे । अविलम्ब यहाँ भी धर्मश्रवण हित ये सब नर नारी थे । उपदेश यहाँ जो हुवा, उसे सुन सब जनता का क्षेम हुवा । सम्मिलित संघ में हुये कई, यों जैन धर्म से प्रेम हुवा || श्री 'सुमनोभद्र' प्रभृति ने जिनदीक्षा ली उन जग त्राता से । कर्त्तव्य ज्ञान पा लिया शीघ्र, उन तीन लोक के ज्ञाता से || परम ज्योति महावीर 'वाणिज्य ' ग्राम में 'महावीर' निज संघ सहित फिर श्राये थे । अपने पन्द्रहवें 'कोसल प्रदेश' से चल 'विदेह' पहुँचे वे केवल ज्ञानी थे I 'श्रानन्द' शिवानन्दा' दोनों, बन गये धर्म-- श्रद्धानी थे 11 चतुर्मास, के दिन भी यहीं बिताये थे || -
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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