SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोलहवाँ सर्ग यह देख देव ने सोचा यह इनसे न डरे हैं 'वीर' श्रभी । मेरे इन सभी उपायों से, हैं डिगे न ये गम्भीर अभी || मैंने हैं विषम प्रयत्न किये, समता है । पर तजी न इनने क्या इनको अपनी काया से, रह गयी न किंचित् ममता है ? सम्भवतः अपने पथ से डिग पायेंगे न सरतला से । विफल पर मेरा भी देवत्व यदि टलते ये न अटलता से || ये यह सोच सिंह औ' चीतों की सेना उसने सोत्साह रची । घमसान वहाँ मच गया सभी जीवों में चीख कराह मची ॥ भी न प्रभाव पड़ा, पर कोई उन महातपी उत्साही पर | सुर की न एक भी युक्ति चली, उन मुक्ति-मार्ग के राही पर ॥ ૪ર
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy