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________________ ४२० दन्तावलि बाहर को निकाल, ग-युग लोहित सा लाल किया । श्र' लगा भाल पर सींगों को, निज रूप बना विकराल लिया || चिल्लाया, 'पर डरे 'वीर' यों रुद्र रूप धर और मचा कर विविध उपद्रव क्लेश दिया । माया से घोर भयानक वह, सारा निकटस्थ प्रदेश किया || गरजा, चिंघाड़ा, भगवान नहीं | उत्पात सामने होते थे, पर तजते थे वे ध्यान नहीं || परम ज्योति महावीर जब उसने देखा, मेरे ये मारे प्रयत्न हो गये विफल । तो अन्य उपायों से उनको, तपच्युत करने को हुवा विकल ॥ माया से उसने भीलों की सेना ली बना नवीन वहीं | जो उन्हें डराने लगी किन्तु, चे रहे ध्यान में लीन वहीं ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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