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________________ सातवाँ सर्ग इन्द्राणी ने उनके तन पर, शुचि लेप भक्ति के साथ किया । ' तिलक लगा कर अति शोभित, उन 'लोक तिलक' का माथ किया || उन प्रभुवर के, ' त्रैलोक्य मुकुट' मस्तक पर मुकुट पिन्हाया फिर । उन जग के चूड़ामणि के शिरपर चूड़ामणी लगाया फिर ॥ नयनों में नाँजा पर वे नहीं अल्प भी क्षुब्ध हुये । कर्णो में कुन्डल पहिनाये, पर वे न अल्प भी लुब्ध हुये ॥ मणिहार कण्ठ में डाला पर, उससे न उन्हें कुछ क्षोभ हुवा | कटि में कटि सूत्र पिन्हाया पर, उसका न उन्हें कुछ लोभ हुवा || श्रृंगार शची ने पर हुवा नाथ को भय भय के मारे श्राया था, उन निर्भय प्रभु के पास नहीं || पूर्ण किया, त्रास नहीं । २१५
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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