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________________ ३१४ जल धारा शिर पर गिरती थी, पर कँपे वीर भगवान नहीं | 'त्रिशला' ने - सन्तान नहीं ॥ अबला होकर भी थी जनी अवल गिर वह पवित्र, प्रभु के तन पर जल राशि विशेष पवित्र हुई । निज सँग अशोक दल गिरने से, उसकी छवि चित्र विचित्र हुई || विशाल हुये । अष्टाधिक एक सहस्र कलशसे यों अभिषेक पर नहीं अल्प भी क्षोभित वे, 'त्रिशला ' माता के लाल हुये ॥ परम ज्योति महावीर द्वारा चन्दनादि फिर देवों की अग्नि जलायी शुद्ध गयी । जिसकी पावनतम ज्वाला में, डाली भी धूप विशुद्ध गयी || पश्चात् इन्द्र ने अष्ट द्रव्यसे पूज पूर्ण अभिषेक किया । तदनन्तर उन शुभ परम ज्योति'को गोदी में साविवेक लिया ||
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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