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________________ २०२ च ओर बिखेरे गये चने, चुगने को विविध विहंगों को । सुस्वादु खाद्य सामाग्री भी, भिजवायी गयी कुरङ्गों को || 1 नर से बढ़कर भी वानर दलको दिये गये फल केल्वे थे । वे भी इतने जितने वे, खा सकते नहीं अकेले थं ॥ 'खाजा' 'खाजा' कह श्वानों को भी गये खिलाये खाजा थे । चिटियों को राजा थे ॥ निज सम्मुख चींटों चीनी चंद्रवाते परम ज्योति महावीर थं गये सिचाये वृक्ष, लता शीतल जल भर भर गगरी में । नर से तरु तक कोई न रहा, भूखा प्यासा उस नगरी प्रभावों को, जनता के सभी नृप ने यो प्रथम भगाया था । फिर अन्य महोत्सव करने में, अपना शुभ ध्यान लगाया था || में ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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