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________________ सासका सर्ग २. धनदान निरन्तर होने से, निर्धनतापूर्ण विलीन हुई। सिद्धार्थ राज्य के गृह गृह में, लक्ष्मी देवी श्रासीन हुई । छाया प्रहर्ष का राज्य, राज्य-- से निर्वासित दुख क्लेश हुवा । सम्पत्ति रमा पा राजा से, हर निधन व्यक्ति रमेश हुवा ॥ श्री' यथा योग्य उपकरणों से सम्मानित हर विद्वान हुवा । हर गीतकार हर नृत्यकार-- का राजकीय सम्मान हुवा ।। उन्मुक्त हृदय औ' मुक्त हस्तसे यह धनदान प्रवाह चला। अवलोक जिसे ही जन मन गण, नृप का औदार्य सराह चला ॥ पकवान परोसे गये मधुर हर गौ को हर गौशाला में। मीनों को लघु मिष्टान्न बँटे, हर सरिता में हर नाला में।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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