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________________ मतवाँ सर्ग . अब तक सुन्दरतम शैली से जा चुका नगर सिंगारा था । अति कुशल शिल्पियों ने उसका, सौन्दर्य विशेष निखारा था | अतएव वहाँ प्रारम्भ नये, जिनवर के यश के गीत हुये । सुन जिन्हें सभी श्रोताओं के, युग कर्ण विशेष पुनीत हुये ॥ मधु ध्वनि से अम्बर के अञ्चल, औ' वसुन्धरा की गोद भरी । णरुत लहरों पर लहर गयी, स्वर लहरी यह अामोद भरी ॥ वाद्यों से निकले नादों से, गुञ्जित सम्पूर्ण दिगन्त हुये । निज सपरिवार भी जिनको सुन, प्रमुदित 'त्रिशला' के कन्त हुये ॥ तज वसन रजक हो गये खड़े, "गण्डकी नदी के घाटों पर । रोगी तक राग-विमोहित हो, उठ कर बैठे निज खाटों पर ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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